सपने का भ्रमजाल
चंदन नगरी के राजा महेंद्र प्रजापत थे एक दिन उन्होंने सपना देखा कि राज्य में विप्लव हो गया और प्रजा ने उन्हें धक्के मारकर राज्य से निकाल दिया! वह फटेहाल सुखी-प्यासे इधर-से उधर घूम रहे थे कि एक हवेली के बाहर सेठ गरीबों को रोटी साग बांट रहा था वह वहां गए और रोटी साग ले आए उन्होंने कोर तोड़ा ही था कि दो गाय वहां लड़ती हुई आ गई वह बचाने को भागे तो रोटी हाथ से गिर कर मिट्टी में मिल गई राजा अपने हाल से फूट-फूटकर रोने लगे उनकी आंखें खुली तो सुबह हो चुकी थी ! उनके दरबार के भाट महल के आगे ‘महाराज की जय हो’ की आवाज लगा रहे थे राजा आश्चर्यचकित थे ! वह सपने में हुए एहसास और वास्तविकता में तय नहीं कर पा रहे थे कि सच क्या है सपने में उनका रोटी के लिए रोना या राजा होना? उनके मन में द्वंद चल रहा था राजा उस दिन जल्दी ही दरबार पहुंच गए वहां उन्होंने ज्योतिषियों और पड़ितों से पूछा कि उन्हें यह सपना क्यों आया ! इसका फल क्या मिलने वाला है राजा के सवाल का जवाब कोई नहीं दे पाया दरबार में बिल्कुल सन्नाटा था तभी वहां परमानंद नाम के ऋषि आए उन्हें देखकर आजा को थोड़ी सांत्वना मिली उन्होंने वही प्रश्न ऋषि से भी दौराया ऋषि ने कहा ‘राजन ना’ तो तुम्हारा सपना सच है और ना ही तुम्हारा राजा होना सपना और यह संसार दोनों ही भ्रमजाल हैं तुम्हारे भोग ऐश्वर्य और सपने कुछ भी शाश्वत नहीं है ऋषि के जवाब से राजा के सभी द्वंद समाप्त हो गए थे
Sunil Kumar Patidar
ict ई सर्विस & ईमित्र
ग्राम पंचायत अरनोदा , चित्तोडगढ
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